लखनऊ आईबीसी ग्लोबल न्यूज नेटवर्क – झांसी में माफिया डॉन अतीक अहमद के बेटे असद व शूटर गुलाम मोहम्मद की मुठभेड़ में मौत पर विपक्षी दलों के कुछ नेता जिस तरह दुर्दांत अपराधियों की मौत पर द्रवित हो कर पुलिस पर सवाल उठाने में लगे हुए हैं। इनकी यह स्थितिहास्यास्पद व दुर्भाग्यपूर्ण है.जनता इसे वोट बैंक की राजनीति के रूप में देखती है.अपराधी का कोई जाति धर्म नहीं होता कहने वाले आखिर इतने खूंखार हत्यारों के प्रति आंसू क्यों बहाए जा रहे हैं। जब पुलिस का मनोबल बढ़ाने का काम किया जाना चाहिए तब उसे कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्नकिया जा रहा है. यह केवलसस्ती राजनीति ही नहीं बल्कि अपराधियों को बढ़ाने एवम प्रोत्साहित करने का प्रयत्न है जिसे आम जनता को समझना होगा।
11 तारीख की रात को बिजनौर पुलिस ने डी-27 गैंग के मुखिया, ढ़ाई लाख के प्रदेश माफिया कुख्यात आदित्य राणा को मंगलवार रात पुलिस मुठभेड़ में मारा, कहीं कोई हल्ला नहीं मचा था।
लेकिन जैसे ही अतीक अहमद के बेटे और उसके साथी को पुलिस ने ठोंका विधवा बिलाप शुरू हो गया।
सपा बसपा, ओवेसी और मीडिया के एक विशेष वर्ग और लिब्राडू गिरोह द्वारा। क्यों? क्योंकि उस अपराधी का नाम आदित्य राणा था और इस अपराधी का नाम असद अतीक अहमद है। जिसका सम्बन्ध सपा बसपा और खास समुदाय से है। वोट बैंक पॉलिटिक्स तुष्टिकरण में अंधे ऐसे लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा कोई मायने नहीं रखती है।
तो क्या जिनको अतीक अहमद और उसके लोगों में अबतक मारा लूटा अपहरण किया जमीनों पर कब्जा किया उनके प्रति इन लोगों को कोई संबेदना नहीं है? बिल्कुल भी नहीं है यही सच है।
मज़ेदार बात यह है कि जिस राजू पाल को गोलियों से छलनी कर दिया था अतीक अहमद और साथियों ने वो राजू पाल उस समय बसपा से विधायक थे, अतीक अहमद सपा से सांसद था।
अब उसी राजू पाल की पत्नी सपा से विधायक हैं
और अतीक अहमद की पत्नी का सम्बन्ध बीएसपी से है।
अतीक अहमद का बायो चेक करें तो सपा लिखा आता है।
अब समझिए इस डर्टी पॉलिटिक्स को और इनकी नैतिकता को।🔥