अखिलेश यादव होंगे सपा के उम्मीदवार
कन्नौज लोकसभा सीट से सपा के घोषित प्रत्याशी तेज प्रताप की कटी टिकट

कन्नौज 24 अप्रैल : इत्र नगरी से तेज प्रताप की जगह अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने भले ही कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है लेकिन सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने अखिलेश की उम्मीदवारी का ऐलान किया है. रामगोपाल यादव ने कहा कि अखिलेश यादव कन्नौज से ही चुनाव लड़ेंगे. अखिलेश 25 अप्रैल की दोपहर कन्नौज सीट से नामांकन करेंगे.सपा के आफ़िसियल सोशल मीडिया पेज पर भी अखिलेश के चुनाव लड़ने व नामांकन करने की सूचना दी गई है।


अब कन्नौज से उम्मीदवार बदलने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये उठ रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के रण में कन्नौज सीट से क्यों अखिलेश यादव को खुद उतरना पड़ रहा है और क्यों तेज प्रताप को उम्मीदवारी के ऐलान के 48 घंटे के भीतर ही हटाने की नौबत आ गई?
क्यों आई तेज प्रताप को हटाने की नौबत?———-
           सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव  ने अबसे क़रीब २० वर्ष पूर्व कन्नौज की जनता से अपने पुत्र अखिलेश यादव को नेता बना देने की अपील की थी। मुलायम सिंह की अपील पर कन्नौज की जनता ने अखिलेश को राजनीति के शीर्ष पायदान पर पहुँचा दिया और फिर अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। अखिलेश ने भी कन्नौज की जनता को दिया वचन निभाते हुए अपनी लोकसभा को विकास किया और अपनी विरासत पत्नी डिंपल यादव को सौंप दी। लेकिन मुलायम परिवार की विरासत को सँभालने में डिंपल कामयाब नहीं हो सकी और कन्नौज के एक युवा भाजपा नेता सुब्रत पाठक ने वर्ष 2019 में उन्हें शिकस्त देते हुए यादव परिवार की विरासत ध्वस्त कर दी। एक बार फिर लोकसभा चुनाव आया और अंतिम समय में अखिलेश ने यादव परिवार की विरासत को वापस लाने के लिए तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार घोषित कर दिया। अखिलेश को उम्मीद थी कि कन्नौज की जनता उनके फ़ैसले का सम्मान करेगी और एक बार फिर से परिवार के सदस्य को दिल्ली के दरबार में भेजेगी।
अखिलेश के फ़ैसले से उनकी ही पार्टी में छायी निराशा——
          अखिलेश यादव द्वारा दो दिन पूर्व जैसे ही तेज प्रताप को कन्नौज से प्रत्याशी बनाया गया सपा के स्थानीय नेताओं का मिज़ाज ही बदल गया। अखिलेश यादव से कन्नौज लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुरोध करने के लिए दर्जनों नेता लखनऊ पहुँच गये और उनसे फ़ैसला बदलने की गुहार लगाई। सूत्र बताते हैं कि स्थानीय नेताओं ने तेज प्रताप के लिए कन्नौज में सियासी मुश्किल का संदेह जताया।

लोकल लेवल पर सपा के कार्यकर्ता तेज प्रताप की उम्मीदवारी पर नाखुशी जताते हुए यह भी तर्क दे रहे थे बड़ी आबादी ने तेज का नाम तक नहीं सुना है. लोकल नेता किसी भी सूरत में पार्टी की स्थिति कन्नौज से कमजोर होने देने का मौका नहीं चाहते.
समजावादियों का गढ़ रहा है कन्नौज—-
       समाजवादी पार्टी का गढ़ रहे कन्नौज से पहले सांसद डॉक्टर राममनोहर लोहिया थे. डॉक्टर लोहिया 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर कन्नौज सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे. इस सीट का मुलायम परिवार से भी पुराना नाता है. 1998 में सपा के टिकट पर प्रदीप यादव जीते थे और 1999 में यहां से मुलायम सिंह यादव को जीत मिली. मुलायम के यह सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव में अखिलेश जीते और तब से 2019 में डिंपल की हार तक यह सीट मुलायम परिवार के पास ही रही. 1998 से 2019 तक सपा के कब्जे में रही इस सीट को फिर से वापस पाने के लिए अखिलेश यादव से बेहतर विकल्प पार्टी के पास नहीं था. इस सीट से मुलायम और अखिलेश के साथ ही डिंपल भी सांसद रही हैं लेकिन कहा जा रहा है कि जनता से उनका कनेक्ट भी वैसा नहीं रहा जैसा दोनों पूर्व सीएम का था.
निकाय चुनाव में अखिलेश ने कन्नौज से लड़ने के दिये थे संकेत——
      यूपी निकाय चुनाव के दौरान अखिलेश ने कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ने के संकेत भी दिए थे. कहा तो यह तक जा रहा था कि खोया गढ़ वापस पाने के लिए सपा के सामने सबसे मजबूत विकल्प यही है कि खुद अखिलेश मैदान में उतरें.
अखिलेश के उतरने के पीछे रणनीति क्या?
सपा नेताओं को यह उम्मीद है कि अखिलेश के मैदान में आने से यादव-मुस्लिम मतदाता गोलबंद होंगे ही, पार्टी को हर जाति-वर्ग से मुलायम के इमोशनल कनेक्ट का लाभ भी मिल सकता है. अखिलेश इस सीट से एक उपचुनाव समेत लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं और वह इस सीट के लिए नए नहीं हैं।

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Author: ibcglobalnews

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