उपराष्ट्रपति ने छात्रों और शिक्षकों से कहा कि वे कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत विरोधी प्रचार का हिस्सा न बनें

नयी दिल्ली – उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र पूरी तरह से संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस के बारे में है। उन्‍होंने व्यवधान और अशांति को लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत बताया। उन्होंने इस तथ्य के बारे में दुख और चिंता व्यक्त की, कि लोकतंत्र के मंदिरों में अशांति को हथियार बनाया गया है जिसे सभी व्‍यक्तियों को न्‍याय सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे कार्यात्‍मक रहना चाहिए।

लोकतांत्रिक मूल्यों के सार को संरक्षित और सतत बनाए रखने के लिए उन्‍होंने सभी का आह्वान करते हुए इस बात पर जोर दिया कि संसद को हर पल कार्यात्माक न रखने का कोई बहाना नहीं हो सकता। उन्‍होंने कहा कि इस देश के लोग इसके लिए भारी मूल्‍य चुका रहे हैं। उपराष्‍ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब किसी विशेष दिन संसद में व्यवधान होता है तो उस दिन प्रश्नकाल नहीं हो सकता है, जबकि प्रश्नकाल शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को सृजित करने वाला एक तंत्र है। इसमें सरकार हर सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य है और इससे सरकार को काफी लाभ भी होता है। जब आप लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन के बारे में सोचते हैं तो प्रश्नकाल का न होना कभी भी तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है।

आज विज्ञान भवन में जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि असहमति और मतभेद लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा हैं, लेकिन “असहमति को शत्रुता में बदलना लोकतंत्र के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।” उन्‍होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ‘विरोध’ को ‘बदले’ में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए। उन्‍होंने सुझाव दिया कि बातचीत और चर्चा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।

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Author: ibcglobalnews

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