लखनऊ – जब इंदिरा गांधी को बताया गया कि उनका प्रिय बेटा कैंब्रिज में एक रेस्टोरेंट कम बार में वेटर का काम कर रही एंटोनियो माइनो के प्यार के चक्कर में है, तब इंदिरा गांधी ने कई लोगों को राजीव गांधी को समझाने के काम में लगाया। उसमें उस वक्त कैंब्रिज में प्रोफेसर सुब्रमण्यम स्वामी भी थे और उस वक्त कैंब्रिज में पढ़ रही बेनजीर भुट्टो भी थी।
बेनजीर भुट्टो और इंदिरा गांधी में एक मां और पुत्री जैसा रिश्ता था क्योंकि इंदिरा गांधी की जीवनी पर लिखी किताब जो उनकी सहेली पुपुल जयकर ने लिखा है उसमें उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी बेनजीर भुट्टो को बहुत मानती थी।
सबने राजीव गांधी को ऊंच नीच प्रतिष्ठा इत्यादि समझाया।
फिर जब इंदिरा गांधी को यह भी पता चला इस एंटोनियो माइनो का बाप इटली का एक अपराधी है जो कभी मुसोलिनी की फासीवादी संगठन में रह चुका है, और एक दो बार नहीं बल्कि 26 बार जेल जा चुका है, और यह लड़की अपने घर बार बार आ रहे पुलिस से तंग आकर ही एक शरणार्थी के रूप में कैंब्रिज में आई है, और एक रेस्टोरेंट कम बार में वेटर की नौकरी करके अपना गुजारा कर रही है, तब इंदिरा गांधी और भी ज्यादा परेशान हो गई और उस लड़की की शिक्षा मात्र नाइंथ क्लास ही थी।
राजीव गांधी नहीं माने और कहते हैं कि बच्चों की जिद के आगे बड़े बड़े लोग हार जाते हैं।
उसके बाद एंटोनियो माइनो को भारत बुलाया गया और इंदिरा गांधी ने कुछ दिनों तक हिंदी और भारतीय तौर तरीके सीखने के लिए उसे अमिताभ बच्चन के घर ठहराया।
जहां अमिताभ बच्चन की मां स्वर्गीय तेजी बच्चन और अमिताभ बच्चन के पिता तथा अजीताभ बच्चन अमिताभ बच्चन दोनों भाई सब लोग जो भारतीय संस्कृति के तौर तरीके सिखाने लगे।
फिर राजीव गांधी और एंटोनियो माइनो उर्फ सोनिया गांधी की सगाई वही अमिताभ बच्चन के बंगले में हुई थी जिसमें सोनिया गांधी के मां का पूरा रस्म अमिताभ बच्चन की मां श्रीमती तेजी बच्चन ने निभाया था।
खैर ये तो पहला पार्ट है अब दूसरा पार्ट जानिए जो बेहद ज्यादा खतरनाक है।
अमिताभ बच्चन परिवार दशकों तक कांग्रेस का वफादार रहा राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन अच्छे दोस्त थे।
राजीव गांधी के कहने पर अपने फिल्मी कैरियर के पीक के दौरान अमिताभ बच्चन ने फिल्मी दुनिया छोड़कर राजनीति में कदम रखा, इलाहाबाद से चुनाव लड़े और तब के बहुत बड़े नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की जमानत जप्त करवा दी।
लेकिन राजनीति काली कोठरी में अमिताभ बच्चन अपने आप को बचा नहीं पाए और बोफोर्स में दलाली का दाग उनके ऊपर भी लगा और उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर वापस फिल्मी दुनिया में चले गए।
फिर अमिताभ बच्चन कर्ज के जाल में उलझ गए और तब समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह सहारा ग्रुप के सुब्रत राय सहारा जैसे लोगों ने उन्हें मदद करके कर्जे के जाल से मुक्ति दिलाई।
अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई। फिर अमिताभ बच्चन और फर्जी गांधी परिवार के बीच में तल्खी और दूरियां बढ़ गई।
उसी दरम्यान अमिताभ बच्चन की मां श्रीमती तेजी बच्चन का निधन हुआ और आगे जो मैं बात बताने जा रहा हूं यह बात खुद अमिताभ बच्चन जी ने एक टीवी चैनल पर कहा था।
अमिताभ बच्चन ने यह बताया कि मुझे पूरा यकीन ही नहीं बल्कि विश्वास था कि मेरे मां के अंतिम संस्कार में गांधी परिवार जरूर आएगा क्योंकि मेरी मां ने सोनिया गांधी के मां की भूमिका निभाई थी। मेरी मां की गोद में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी खेले हैं कूदे हैं। और मैंने अंतिम संस्कार में 4 घंटे तक विलंब किया, क्योंकि मैं गांधी परिवार के लोगों का इंतजार कर रहा था। फिर अंत में तेजी बच्चन जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया और गांधी परिवार से कोई भी व्यक्ति श्रीमती तेजी बच्चन के अंतिम संस्कार में नहीं गया।
और अमिताभ बच्चन ने एक यह भी लाइन जोड़ी थी, वह राजा है हम रंक हैं भला एक राजा रंक के अंतिम संस्कार में क्यों आएगा? आखिर एक राजा एक रंक से रिश्ता क्यों रखेगा?
अमिताभ बच्चन की यह लाइन फर्जी गांधीओं के गाल पर सबसे बड़ा तमाचा है।
सोचिए आज जो यह कांग्रेसी चमचे जगह जगह एंटोनियो माइनो उर्फ सोनिया गांधी को मां बता रहे हैं, भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत बता रहे हैं, इन कांग्रेसी चमचों को पता होना चाहिए कि सनातन संस्कृति में जन्म देने वाली मां से भी बड़ा दर्जा कन्यादान देने वाली मां का होता है और सोनिया गांधी सिर्फ और सिर्फ घमंड अहंकार से ही अपनी कन्यादान करने वाली मां तेजी बच्चन के अंतिम संस्कार में नहीं गई।
और ऐसी नीच हरकत एक विदेशी संस्कृति में पली बढ़ी और विदेशी संस्कृति को मानने वाली महिला ही कर सकती है कभी कोई भारतीय संस्कृति वाली महिला नहीं कर सकती।